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फ़ुद्दी मरवाई सुबह सवेरे-4 - Fuddi Marwayi Subah Savere - 4

फ़ुद्दी मरवाई सुबह सवेरे-4
फ़ुद्दी मरवाई सुबह सवेरे-4

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पापा जी शायद सेक्स के माहिर खिलाड़ी थे क्योंकि अब वो मेरे दोनों उत्तेजनादायक जगहों पर यानि की स्तन और चूत को एक साथ रगड़ रहे थे, बीच बीच में मेरी बाहों के नीचे कांख वाले हिस्से पर भी जीभ फिरा रहे थे।

और आखिर अब मैं भी तो एक नारी ही हूँ, वो भी खुले विचारों वाली और सेक्स की भूखी !
मेरा विरोध अब ख़त्म हो चला था, चूत के पानी ने मेरी आँखों का पानी सुखा दिया था।

फिर उन्होंने मेरी पेंटी हाथ डाल कर उसे खींचने का प्रयास किया जो में कूल्हों में फंसी हुई थी।
मुझे लगा कि वो फट ही जायेगी इसलिए मैंने अपने कूल्हे ऊँचे करके उनका काम आसान कर दिया।
अब मैं पूर्ण निर्वस्त्र हो नग्नावस्था में आ गई थी।

अब मेरे साथ जो होने वाला था, उसके बारे में सोच सोच कर ही मेरे शरीर में झुरझुरी सी आने लगी।
अब वो मेरे पूरे नग्न बदन को निहारने लगे, मैंने आँखें बंद कर ली, अपने हाथों को वक्ष-उभारों पर रख लिया और अपनी दोनों जांघों को भींच कर अपनी चूत को भी छुपा लिया।

वो बड़बड़ा रहे थे- स्वाति, तुम निहायत ही खूबसूरत हो, आज जो मैं कुछ कर रहा हूँ उसमें कसूर तुम्हारा ही है, कल तुम जो पूरी नंगी पड़ी हुई थी वो सब देख कर तो फ़रिश्ते भी तुम्हें चोदने आ जाते और फिर मैं तो सिर्फ एक इंसान हूँ जिसने एक अरसे से सेक्स नहीं किया ! यह आग तुमने ही लगाई है और अब इसे तुम्हीं बुझाओगी भी !

मैं मन ही मन उनकी इस सेक्स फिलोसफी पर हंस रही थी कि पापा जी अपनी इस गुस्ताखी का कसूरवार भी मुझे ही ठहरा रहे थे और चोदने को तैयार हो रहे थे।

अब उन्होंने अपने कपड़े उतरने शुरू कर दिए, पहले कुर्ता, पायजामा बनियान और फिर खुद की चड्डी भी उतार फेंकी।

अब मेरे सामने एक लंबा चौड़ा इंसान था जिसके सर के बाल जरूर काले रंगे हुए थे पर छाती पर सफ़ेद बालों का जंगल था, लण्ड बहुत दमदार 8 इंच के आसपास और था, झांटें सफाचट थी, जबकि कल मैंने यहाँ बेतरतीब झांटे देखी थी, इसका तो यही मतलब था कि बुड्ढे ने मुझे चोदने की पूरी तैयारी की हुई थी और झांटे साफ़ कर के आया था।

लण्ड की गोलियाँ और उसकी की थैली बड़ी साइज़ की थी।
उन्होंने पास आकर अपना लण्ड मेरे हाथों में दे दिया, वो बहुत ही कड़क और काला था जैसा अफ्रीकन लोगों का होता है।
मैंने ब्लू फिल्मों में ऐसा लण्ड देखा था, अब वो लण्ड को मेरे होंठों पर फिराने लगे, मैं समझ गई कि उनका इरादा क्या है, और डर भी गई क्योंकि यह बहुत मोटा जो था।

पर उन्होंने बलपूर्वक मेरे बाल पकड़ कर मेरे मुंह में अपना लण्ड ठूंस दिया, मेरे होंठ फ़ैल कर दर्द करने लगे, सांस रुकने सी लगी पर वो मेरे मुँह की चुदाई करने लगे।
मैं लाचार थी, मेरे दान्त उनके लण्ड पर चुभने लगे तो उन्होंने मेरे थूक से भीगा हुआ अपना लण्ड बाहर निकाल लिया और मेरी जान में जान आई।

अब वो भी पलंग पर चढ़ आये और पहले बलपूर्वक मेरे हाथ मेरे उभारों से हटा कर मेरे सर के ऊपर रख दिए और मेरे गाल भींचते हुए बोले- ये हाथ यहीं पर रखना… समझी मेरी बेटी, वरना तेरी ये जो चूचियाँ है ना, इन्हें मरोड़ दूंगा।
और सच में मरोड़ के दिखाई भी सही, थोड़ा दर्द तो हुआ पर मज़ा आया।

और फिर मेरे चूचों, पेट पर हाथ फिराते हुए अपने दोनों हाथ मेरी दोनों जांघों पर ले गए और एक झटके से उन्हें भी खोल दिया।

मुझे दर्द हुआ, मैं शर्म से गड़ गई क्योंकि मेरी चूत बहुत ज्यादा गीली हो रही थी, जो मेरी उत्तेजना की पोल भी खोल रही थी।
फिर मेरे पैर भी फैला दिए और बोले- इन्हें ऐसे रखना, समझी?

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इस बार मैंने उनकी बात पूरी की वरना वो डराने वाले अंदाज़ में बोले- वरना !
यह कहते हुए मेरे दोनों चूतड़ों पर झन्नाटेदार चपत मारी और बोले- लाल कर दूंगा तेरी गांड पीट पीट कर !
मैंने कहा- पापा जी, आखिर किस बात की सज़ा दे रहे हो मुझे?

वो मेरी चूत और गांड सहलाते हुए बोले- लापरवाही से पूरे घर के गेट खुले छोड़ कर और नंगी सोने की सज़ा है यह !
अब उन्होंने मेरे चेहरे से मुझे चूमना शुरू किया मेरे होठों पर अपने होंठ रख दिए।

मुझे अजीब सा लगा, फिर वो नीचे मेरे स्तन शिखर को चूसते हुए नीचे चले, मेरी गहरी नाभि पर जीभ फिराई।
मैं उत्तेजना से मरी जा रही थी और जैसे ही उनकी जीभ ने मेरी चूत को छुआ मेरे आहें बाहर भी निकलने लगी।

पर वो यहाँ तक भी नहीं रुके, अपनी उँगलियों से मेरी चूत की दोनों पंखुड़ियों को पूरा खोल दिया और अपनी जीभ को मेरी चूत के सबसे नीचे वाले हिस्से पर रख कर उसे गहराई तक धँसाते हुए, ऊपर की तरफ लाये और मेरे योनि के दाने को रगड़ दिया।

मैं उछल पड़ी और पैर पटकने लगी, पर वो यही क्रिया बार बार दोहराने लगे।
अब मैं चिल्लाने लगी- पापा जी, प्लीज़ !
और पूरी ताक़त लगा कर पलट गई।
लेकिन ये भी पापा जी के लिए एक और सौगात हो गई क्योंकि अब मेरी मस्त मस्त गाण्ड उनकी पकड़ में आ गई थी।

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मेरे चूतड़ सही में बहुत ही मस्त और उत्तेजक हैं, नीलेश भी अपने फोरप्ले का काफी समय इन पर लगाता है।
एकदम चिकने गोल दूधिया जैसे दो पूनम के चाँद किसी ने बाँध दिए हों और उनके बीच की दरार एक लम्बी खाई की तरह गहरी ! पापाजी तो बावरे हो गए यह सब देख कर और उन्होंने मेरी गांड को पकड़ के ऊंचा कर दिया, मेरे सर और कमर नीचे कर दी।

अब उनके पास मेरी गांड के गोले, गांड का छेद और चूत सब कुछ था और फिसलपट्टी की तरह नीचे जाती कमर।
अब उन होने समय बर्बाद नहीं किया, और अब वो मेरे गांड के छेद को भी चाटने लगे, थूक थूक कर और खोल खोल कर !
मुझे अब सही में मज़ा आने लगा था और मेरी चूत चुदने को मरी जा रही थी यानि मैं खुद अपने ससुर पापा जी से चुदवाने को उतावली हो रही थी !

पापाजी फौजी थे तो गालियाँ भी बोलते थे और अब इस समय भी उनकी गालियाँ शुरू हो गई थी, उन्हें कोई लिहाज़ नहीं था कि वो अपनी बहु को ऐसा बोल रहे है- साली, बहनचोद, मादरचोद, और भी जाने क्या क्या, तेरी चूत का भोसड़ा बना दूंगा !’

अब यह भोसड़ा क्या होता है, यह मुझे नहीं पता, पर वो बोल रहे थे।
और मैं एक कुतिया की पोज़िशन में गांड ऊँची किये उनके लण्ड का इंतज़ार कर रही थी।
और फिर उन्होंने मेरी गीली चूत के मुँह पर लण्ड टिकाया और धीरे धीरे अंदर सरकाने लगे।
दोस्तो, सही बताऊँ तो मेरी तो जान ही निकाल दी उन्होंने !

मेरे मुख से ऐसी चीख आज तक नहीं निकली कि पापा जी को मेरा मुँह भींच कर बंद करना पड़ा।
और फिर वो मेरे बालों को पकड़ कर और मेरी नंगी पीठ को मसलते हुए मेरे चूतड़ों पर चांटे मारते हुए चोदने लगे।
मेरी फ़ुद्दी इतनी गीली थी कि फच फच… फच फच… की आवाजे आ रही थी, मेरी ऊओह्ह्ह आआआह्ह्ह्ह… आऊउछछ… और उनकी गालियाँ सब कुछ एक साथ चल रहा था।

लण्ड कुछ ज्यादा ही अंदर घुसा हुआ था।
फिर मैंने अपनी चूत की गहराई में एक गर्म गर्म सा लावा फूटता हुआ महसूस किया।
मैं अपने बाप समान ससुर से चुद चुकी थी।
और अब यग बात किसे बताऊँ किससे छुपाऊँ क्योंकि मुझे खुद भी खूब मज़ा आया था।

और फिर मैं ऐसे ही पड़ गई, पापा जी ने मुझे चोद चोद के मेरा कचूमर निकाल दिया उस दिन !
और एक बार फिर में वैसे ही नंगी धडंगी सो गई, क्योंकि अब किसका डर था !

दोस्तो, अब मैं आपकी राय जानना चाहती हूँ इस बारे में क्योंकि मैंने यह बात नीलेश को भी नहीं बताई है, और ससुर जी अभी भी मुझे अकेले में पकड़ लेते है, और मैं बेबस हो जाती हूँ।

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