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जिस्म की जरूरत-8 - Jism Ki Jarurat - 8

जिस्म की जरूरत-8
जिस्म की जरूरत-8

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‘उफ्फ… बड़े वो हैं आप!’ रेणुका ने लजाते हुए कहा और फिर वापस मुझसे लिपट गई।

‘हाय… वो मतलब… जरा हमें भी तो बताइए कि हम कैसे हैं..?’ मैंने उनकी चूचियों को दबाते हुए पूछा।

‘जाइए हम आपसे बात नहीं करते…’ रेणुका ने बड़े ही प्यार से कहा और मेरे सीने पे मुक्के मारने लगी।

ऐसा लग रहा था जैसे वो मेरी बीवी हो और हम अपनी पहली चुदाई करने जा रहे हों…
और वो शरमा कर और प्यार-मनुहार से मुझसे अपनी चूत फड़वाना चाह रही हो।

कसम से दोस्तो… इतनी चूतें मारी हैं आज तक लेकिन इतने प्यार से कभी किसी के साथ चुदाई का मज़ा नहीं आया था।

मैंने थोड़ा झुक कर उनके दो नाज़ुक रसीले होठों को अपने होठों में भर लिया और एक प्रगाढ़ चुम्बन में व्यस्त हो गया।
उन्होंने भी मेरा साथ दिया और बड़े प्यार से मेरे बालों में अपनी उँगलियाँ फिराते हुए मेरे चुम्बन का जवाब और भी गर्मजोशी से देने लगी।

मैंने धीरे से अपनी जीभ उनके मुख में डालने की कोशिश की लेकिन मेरे मन में यह ख्याल आया कि शायद छोटे शहर की देसी औरत होने की वजह से उन्हें यूँ फ्रेंच चुम्बन करने का तजुर्बा नहीं होगा लेकिन मेरे ख्याल को गलत साबित करते हुए उन्होंने मेरी जीभ को अपने होठों से चूसना शुरू कर दिया और अपनी जीभ मेरी जीभ से मिलाकर वो मज़ा दिया कि बस मज़ा ही आ गया।

चुम्बन के बीच मैंने अपना एक हाथ उनके गाउन के बेल्ट की तरफ किया और बेल्ट को धीरे से ढीला कर दिया।
वो रेशमी कपडा हल्के से झटके से ही पूरा खुल गया और अब उनका गाउन सामने से दो भागों में बंट गया।

मैंने उन्हें अपने बदन से और भी चिपका लिया और इस बार उनके बदन की त्वचा सीधे मेरे बदन से चिपक गई थी।

मैंने भी ऊपर कुछ नहीं पहना था इसलिए सीधे मेरी त्वचा से उनकी त्वचा का संगम हो गया।

रेणुका जी ने अपना बदन मेरे बदन से रगड़ना शुरू कर दिया और मेरे होठों को बिल्कुल खा जाने वाले अंदाज़ में चूसने लगीं।

मुझसे अब बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा था, मैंने उन्हें कमर से पकड़ कर उठा लिया और रसोई के स्लैब पर बिठा दिया।

अब स्थिति यह थी कि रेणुका जी थोड़ा ऊपर होकर स्लैब पर बैठ गई थीं… उनके पैर दो तरफ फ़ैल गए थे जिनके बीच में मैं खड़ा था और उनका गाउन दो तरफ लुढ़क चुका था।

कुल मिलकर वो नजारा इतना सेक्सी था कि बस पूछिए मत।

मैंने जरा भी देरी न करते हुए उनकी दोनों खूबसूरत गोलाइयों को अपनी हथेली में भर लिया और मसलने लगा।

‘उम्म्म… म्म्म… समीईईर… उफफ्फ… यह क्या कर दिया आपने… कई सालों के दबे मेरे अरमानों को यह कैसी हवा दे दी… हम्म्म्म… बस ऐसे ही प्यार करते रहो…’ रेणुका जी ने मदहोशी में अपनी गर्दन पीछे की तरफ झुका दी और अपने सीने को और भी उभार दिया।

इस तरह से उनकी चूचियाँ और भी तन गई और मैं उन्हें अब सहलाने के साथ साथ धीरे धीरे दबाने लगा… मेरी पकड़ अब बढ़ने लगी थी और मैंने अब और भी ज्यादा दबाव बढ़ा दिया।

‘उफ्फ्फ… समीर बाबू… जरा धीरे दबाइए… अब तो ये आपके ही हैं…’ रेणुका जी ने दर्द महसूस करते हुए मेरे बालों को अपनी उँगलियों से खींचते हुए कहा।

मेरे बालों के खींचने से मुझे भी यह एहसास हुआ कि शायद मैं कुछ ज्यादा ही जोर से उनकी चूचियों को मसल और दबा रहा था।
लेकिन यह बात तो आप सब जानते हैं और खास कर महिलायें की जब मर्द यूँ बेदर्दी से चूचियों को मसलता और दबाता है तो वो मीठा मीठा दर्द महिलाओं को और भी मदहोश कर देता है।

खैर मैंने अब अपनी गर्दन झुकाई और उनकी बाईं चूची के ऊपर अपने होठों से चुम्बन करने लगा… चूमते चूमते मैंने उनकी चूची के दाने को अपने मुँह में भर लिया।

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‘ऊऊऊह… माआआ… उफ्फ्फ समीर बाबू… बस चूस डालिए इन्हें… कई दिनों से इन्हें किसी ने भी इस तरह नहीं चूसा… उफ्फ्फ्फ़!’ रेणुका जी ने एक आह भरी और बड़बड़ाते हुए मेरे सर को पकड़ कर अपनी चूचियों पे दबा दिया।

मेरा एक हाथ उनकी दूसरी चूची को सहला रहा था जो उन्हें और भी गर्म कर रहा था। मैंने काफी देर तक उनकी चूचियों का रस अदल बदल कर पिया और फिर अपने दोनों हाथों से उनकी मखमली जांघों को सहलाने लगा।

जैसे जैसे मैं अपने हाथ ऊपर की तरफ ले जाता वो और ही सिसकारने लगती और मुझे अपनी तरफ खींचने लगती।

आखिरकार मेरे दोनों हाथ उनकी जांघों के आखिरी छोर पर पहुँच गए और उनकी रेशमी झांटों भरी चूत से टकरा गए।

‘हाय… उफ़ समीर बाबू… छोड़ दीजिये हमें… हम पागल हो जायेंगे… उम्म्ह…’ रेणुका जी ने एक गहरी सांस भरते हुए मेरे हाथों को पकड़ लिया और मेरे हाथ वहीं टिक गए।

अब बस मेरी उँगलियाँ ही आजाद थीं और वो उनकी चूत को ढके हुए रेशमी मुलायम झांटों से खेलने लगीं।

मेरी उँगलियों को उस गीलेपन का एहसास हुआ जो अक्सर ऐसे मौके पर चूत से बह निकलता है… यानि रेणुका जी की चूत ने चुदाई के पहले निकलने वाले काम रस की बौछार कर दी थी।

उन्होंने मेरे हाथों को मजबूती से पकड़ रखा था जिसकी वजह से मेरे हाथ और कुछ भी नहीं कर पा रहे थे।

यूँ तो हम मर्दों में इतनी ताक़त होती है कि हम आसानी से इन बाधाओं को दूर करते हुए अपनी मर्ज़ी से सब कुछ कर सकते हैं लेकिन मेरे विचार से ऐसी स्थिति में महिलाओं की मर्ज़ी के मुताबिक ही आगे बढ़ें तो ज्यादा मज़ा है।

खैर मैंने अपने हाथों को छुड़ाने की कोशिश नहीं की और धीरे से झुक कर उनके सपाट पेट को चूमने लगा।
उनकी बेचैनी और बढ़ गई।
मैंने धीरे से उनकी गोल छोटी सी खूबसूरत सी नाभि को चूमा और अपनी जीभ का सिरा नाभि में डाल दिया।

मेरा इतना करना था कि रेणुका जी ने मेरा हाथ छोड़ दिया और मेरा सर पकड़ लिया।

मैं बड़े मज़े से उनकी नाभि को अपनी जीभ से चोदने लगा और वो सिसकारियों पे सिसकारियाँ भरने लगीं!

अब हाथ पकड़ने की बारी मेरी थी क्योंकि अब मैं वो करने वाला था जिससे कोई भी महिला एक बार तो जरूर उत्तेजनावश उछल पड़ती है।

आपने सही समझा, मैंने रेणुका जी के हाथ पकड़ लिए और अपने होठों को सीधा उनकी गदराई फूली हुई चूत पे रख दिया।

‘आआअह्ह्ह्ह… ये ये ये… क्क्क्या कर दिया आपने समीर जी… उफ्फ्फ्फ़… ऐसा मत कीजिये… मैं मर ही जाऊँगी… उम्म्मम्ह…’ रेणुका ने टूटती आवाज़ में अपने बदन को बिल्कुल कड़क करते हुए कहा।

‘रेणुका भाभी… अब आप वो मज़ा लो जो शायद आपको अरविन्द जी ने भी कभी न दिया हो…’ मैंने एक बार उनकी चूत से मुँह हटाते हुए उनकी आँखों में झांक कर कहा और आँख मार दी।

रेणुका जी बस मुझे देखती ही रही, कुछ कह नहीं पाई…
उससे पहले ही मैंने फिर से अपना मुँह नीचे किया और इस बार अपनी जीभ निकाल कर उनकी योनि की दरार में ऊपर से नीचे तक चलने लगा।

‘उम्म्म्ह… उम्म्म्माह… हाय समीर बाबू… यह कौन सा खेल है… ऐसा तो मेरे साथ कभी नहीं हुआ… प्लीज ऐसा मत कीजिये… मुझसे बर्दाश्त नहीं होगा…’ रेणुका तड़पती हुई अपनी जांघों से मेरा सर दबाने लगी और अपने हाथों को छुड़ाने की कोशिश करने लगी।

मैंने उनके हाथों को बिना छोड़े अपनी जीभ से उनकी छोट की फांकों को अलग करके रास्ता बनाया और अब अपनी जीभ को उनके चूत के द्वार पे रख दिया…

एक भीनी सी खुशबू जिसे मैं तीन महीनों से ढूंढ रहा था, वो अब जाकर मुझे महसूस हुई थी।
मैंने अपनी पूरी जीभ बाहर निकाल ली और उनके चूत के अन्दर ठेलना शुरू कर दिया।

‘हाय राम… उफफ… उम्म्मम्म… तुम बड़े वो हो समीर… उम्म्मम्म… ‘ रेणुका ने अब अपना शरीर ढीला छोड़ दिया था और अपनी जाँघों को और भी फैला कर अपनी चूत की चुसाई और चटाई का मज़ा ले रही थी।

अब मैंने उनके हाथ छोड़ दिए और अपने हाथों से उनकी चूचियों को फिर से पकड़ कर सहलाना शुरू कर दिया।

अब रेणुका जी ने अपने हाथों से मेरा सर पकड़ लिया और अपनी चूत पर दबाने लगीं।

मैं मज़े से उनकी चूत चाट रहा था लेकिन मुझे चूत को अच्छी तरह से चाटने में परेशानी हो रही थी।

उनकी चूत अब भी बहुत सिकुड़ी हुई थी, शायद काफी दिनों से नहीं चुदने की वजह से उनकी चूत के दरवाज़े थोड़े से सिकुड़ गए थे।

मैंने अपना मुँह हटाया और उनकी तरफ देखा।
उनकी आँखें बंद थीं लेकिन अचानक से मुँह हटाने से उन्होंने आँखें खोलीं और मेरी तरफ देख कर पूछा- क्या हुआ समीर बाबू… थक गए क्या?

कहानी जारी रहेगी।


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