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आरक्षण की आग में मिला जाट का लंड-1 - Aarakshan Ki Aag Me Mila Jaat Ka Lund- 1

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Read: - नमस्कार दोस्तो, मैं अंश बजाज एक बार फिर से हाज़िर हूँ आप सबके बीच एक और सच्ची कहानी लेकर..

लेकिन यह कहानी मेरी नहीं है, यह कहानी है मेरे ही जैसे एक समलैंगिक लड़के प्रिंस की.. जिसको मेरी ही तरह एक जवान लड़के से पहली नज़र में ही प्यार हो गया और वो भी उसके सपने देखने लगा.. और उसका वो सपना पूरा हुआ या नहीं यह आपको कहानी पढ़कर ही पता लग पाएगा।

प्रिंस ने मेरी कहानी शादी में चूसा कज़न के दोस्त का लंड पढ़ी और उसको पढ़कर उसका मेल आया कि उसको कहानी बहुत पसंद आयी और जब वो कहानी खत्म हुई तो वो बुरी तरह से रो रहा था।
वो क्यों रो रहा था यह मुझसे ज्यादा कोई नहीं समझ सकता…
उसने कहा- मैं भी चाहता हूँ कि मेरी कहानी भी दुनिया के सामने आए!

इसलिए दोस्तो, मैं उसकी कहानी उसी की ज़ुबानी आप लोगों के सामने पेश कर रहा हूँ ताकि आप लोग भी जान सकें कि समलैंगिक सिर्फ चुदने गांड मरवाने लंड चूसने के लिए नहीं बने हैं, उनका भी दिल होता है और उसमें भी लड़कों के लिए वैसी ही भावनाएँ होती हैं जैसी आप लोगों में किसी लड़की के लिए…

आपका ज्यादा समय न लेते हुए कहानी की शुरुआत करता हूँ

मेरा नाम प्रिंस है, मैं हरियाणा के रोहतक जिले के एक छोटे से गांव में रहने वाला 21 साल का गोरा और स्लिम लड़का हूँ।
यूँ तो मेरी एक गर्लफ्रेंड भी है लेकिन मुझे लड़कों में ज्यादा रुचि है जिसके कारण मैं अक्सर उनकी तरफ आकर्षित हो जाता हूँ।

बात फरवरी 2016 की है जब हरियाणा में जाट आरक्षण शुरु हुआ था.. चारों तरफ आरक्षण की आग फैली हुई थी और उस दिन मैं भी इसी आग की चपेट में आ गया।
मुझे कॉलेज से घर जाना था लेकिन बाहर निकला तो सब कुछ चक्का जाम था, न कोई सवारी और न कोई यातायात का साधन.. ऊपर से हर जगह तनाव का माहौल.. कोई रास्ता नज़र ही नहीं आ रहा था।

मैं सोच पड़ गया कि क्या करूँ… फिर किस्मत से मेरे गांव के पास के ही दोस्त दीपेश ने मुझे देख लिया और बोला- तू अभी तक कॉलेज के बाहर क्या कर रहा है?
मैंने उसे अपनी समस्या बताई तो वो बोला- तू चिंता मत कर, तू आज रात हमारे साथ हॉस्टल में ही रुक जा.. हम चार लोग हैं एक पांचवा और सही..
तो मेरी जान में जान आई।

दीपेश ने मुझे कमरे का न बता दिया और मुझे चलने के लिए कहा क्योंकि उसको किसी काम से जाना था।
मैं चैन की सांस लेते हुए हॉस्टल की तरफ बढ़ा.. उसके बताए कमरे पर पहुंच कर दरवाज़ा खटखटाया.. अंदर से आवाज़ आई- कौन है? ..अंदर आ जाओ..

मैं अंदर गया तो मेरी नज़रें एक लड़के पर जाकर रुक गईं.. वो कमरे के फर्श पर बैठकर बादाम फोड़कर गिरी निकालकर खा रहा था.. रंग गोरा, होंठ सुर्ख लाल, लम्बी सी नाक और मोटी मोटी काली आंखें.. इतना खूबसूरत चेहरा पहले कभी नहीं देखा था।

आलथी पालथी मारकर बैठा हुआ था.. उसने नीले रंग के शॉर्ट्स पहने रखे थे जिसमें उसकी गोरी जांघें और भी सेक्सी लग रही थीं.. छाती पर सफेद रंग की हाफ बाजू वाली टी शर्ट जिसमें से उसके गोरे हाथ फर्श पर से गिरी उठाकर उसके मुंह में डाल रहे थे.. उसको देखता ही रह गया!

उसने दो बार पूछा- किससे मिलना है..
मेरा कोई जवाब नहीं आया.. तीसरी बार उसने आँखों के सामने हाथ हिलाते हुए पूछा- भाई किससे मिलना है तुझे?
होश में आकर मैंने पूछा- दीपेश का कमरा यही है?
तो बोला- हाँ यही है.. आता होगा.. तब तक बैठ जा..

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मैं पास ही पलंग पर बैठ गया और उसको जी भरकर देखने लगा.. वो बादाम की गिरी खाने में मशगूल था और मेरी नजर उसके बदन के हर कोने को निहार रही थी।
23 साल का जवान जाट लड़का था.. उसके नीले रंग के ढीले कच्छे में से उसकी फ्रेंची ने जो उभार उसकी जांघों में बनाया हुआ था उसे देखकर मेरे मुंह में पानी आ रहा था।

कुछ देर बाद दीपेश आ गया और मुझे देखकर बोला- अरे प्रिंस तू आ गया..
हम इधर उधर की बातें करने लगे।

बाकी के दो लड़के कमरे के अंदर वाले पार्टिशन में थे।
मैंने दीपेश से उसका नाम पूछा.. वो बोला- वो पीयूष है.. पीयूष हुड्डा..
बस मुझे तो उसके नाम से भी प्यार हो गया और उसके करीब जाने के बहाने तलाशने लगा। लेकिन शाम हो गई मुझे कोई खास कामयाबी नहीं मिली। लेकिन मेरी इन कोशिशों को दीपेश कुछ कुछ समझ रहा था, लेकिन वो चुपचाप मेरे साथ इंटरनेट पर गाने सुनता रहा।

रात हुई और हम खाना खाकर सोने लगे.. मैं रातभर उसके बारे में सोचता रहा, वो टांगें फैलाकर नीचे फर्श पर सो रहा था और मैं पलंग पर उसकी छाती और उसके कच्छे में बने उभार को देख देखकर मचलता रहा.. मन कर रहा था अभी हाथ रख दूं उसके लंड पर लेकिन कुछ कर नहीं सकता था.. पता नहीं नतीजा क्या होगा?

यही सोचते सोचते नींद आ गई, सुबह उठे तो नाश्ता करके दीपेश और बाकी लोग भी अपने अपने डिपार्टमेंट चले गए। उस दिन मैं चाहता तो घर जा सकता था लेकिन पीयूष की जवानी मुझे कमज़ोर बना रही थी, मैंने सोचा कि कुछ भी हो मैं इसको एक बार तो दिल की बात बताकर रहूंगा।

मैं कॉलेज के बहाने से उस वक्त तो कमरे से निकल गया लेकिन फिर 12 बजे ही वापस आ गया।
करीब 1.30 बजे दीपेश भी आ गया और मुझे देखकर बोला- अरे प्रिंस, तू यहीं है अभी?
मैंने कहा- हाँ यार, वो आज भी बाहर हालात ठीक नहीं हैं इसलिए मैं यहीं आ गया।
वो बोला- ठीक है जब माहौल ठीक हो, तो तब चले जाना.. तब तक यहीं रह!
मैं भी यही सुनना चाह रहा था।

धीरे धीरे दिन गुजरा और शाम हुई.. गाने सुनते सुनते रात हो गई और खाना खाकर हम लोग फिल्म देखने लगे।
उसी समय फिल्म ‘सनम रे’ रिलीज़ हुई थी।
मैं मौका पाकर सबसे पहले पलंग पर पीयूष की बगल में जाकर बैठा और उसके पास लेटकर फिल्म देखने लगा।

रात के 11 बज चुके थे.. कुछ देर देखने के बाद मैंने सोने का नाटक किया और पीयूष के कंधे पर सिर रखकर ही सो गया।
दीपेश ने यह हरकत देखी तो बोला- प्रिंस तू सही ढंग से पलंग पर लेट जा..
मैं आराम से पीयूष की बगल में लेट गया।

फिल्म देखने के बाद पीयूष लाइट ऑफ करके अपनी गर्लफ्रेंड से चैट करने लगा.. मैं अपने आप काबू नहीं रख पा रहा था और इसके चलते मैंने अपना हाथ पीयूष के पेट पर रख दिया। मुझे अच्छा लगा और वासना बढ़ने लगी उसके मर्दाना शरीर को छूकर…
उसके बाद मैंने अपनी टांग घुटने के पास से मोड़ते हुए उसकी जांघों के बीच में उसके कच्छे में बने उभार पर रख दी.. घुटना सीधा पीयूष के लंड पर जा टिका, पीयूष के सामान को छूकर बहुत ही आनन्द मिला.. उसका लंड आधे तनाव में लग रहा था।

आगे की कहानी दूसरे भाग में…


Next Part: - आरक्षण की आग में मिला जाट का लंड-2

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