Stories Uploading Time

7:00 am, 7:30 am, 8:00 am, 8:30 am, 9:00 am, 7:00 pm, 7:30 pm, 8:00 pm, 8:30 pm, 9:00 pm Daily 10 Stories Upload

दोस्त की भतीजी संग वो हसीन पल-1 - Dost Ki Bhatiji Sang Vo Haseen Pal-1

दोस्त की भतीजी संग वो हसीन पल-1
दोस्त की भतीजी संग वो हसीन पल-1

Support Us Link:- Click Here

For Audio: - Click Here

Audio: - 

Read: - अन्तर्वासना डॉट कॉम के पाठको, कैसे हैं आप सब!

मैं आपका दोस्त राज आज फिर से अपनी जिन्दगी के कुछ हसीन पल आपके साथ बांटने आया हूँ। मुझे भगवान ने, खासतौर पर कामदेव ने भरपूर आशीर्वाद दिया है तभी तो मेरी जिन्दगी में कभी भी मस्ती की कमी नहीं आई। जब चाहा, जिसको चाहा उसको अपना बना लिया और चुदाई के भरपूर मजे लिए।

आज की कहानी उन हसीन पलों की है जब एक कमसिन कुंवारी चूत मेरे लंड को नसीब हुई।
हुआ कुछ यूँ….
आज से करीब बारह साल पहले की बात है। मैं काम के सिलसिले में चंडीगढ़ गया हुआ था। काम तो एक दिन का ही था पर चंडीगढ़ एक बहुत ही खूबसूरत जगह है, घूमने का मन हुआ तो मैंने रात को रुकने का फैसला किया।

चंडीगढ़ में मेरे एक दोस्त अमन का परिवार रहता था। अमन के पिता जी, जिन्हें मैं ताऊ जी कहता था, वो अब नहीं रहे थे, पर ताई जी, उनका बड़ा बेटा रोहतास अपने परिवार के साथ रहता था। रोहतास के परिवार में रोहतास की पत्नी कोमल, उनकी बेटी मीनाक्षी जो लगभग तब अठारह या उन्नीस साल की होगी और रोहतास का बेटा मयंक जो बारह साल का था।

अमन भी रोहतास के साथ ही रहता था। मेरी अमन के साथ बहुत अच्छी पटती थी क्यूंकि अमन बचपन में कुछ साल हमारे पास ही रहा था।

जब मैंने अमन को बताया कि मैं चंडीगढ़ आ रहा हूँ तो वो ही मुझे जिद करके अपने साथ रोहतास भाई के घर ले गया।
मैं सुबह ही चंडीगढ़ पहुँच गया था। अमन का पूरा परिवार मुझे देख कर बहुत खुश हुआ। लगभग दो साल के बाद मैं उन सब से मिला था।

तब घर पर सिर्फ ताई जी और कोमल भाभी ही थे। कुछ घर परिवार की बातें हुई और फिर मैं अमन के साथ वो काम करने चला गया जिसके लिए मैं चंडीगढ़ आया था। दोपहर तक मेरा काम हो गया तो अमन मुझे फिल्म दिखाने ले गया और फिर शाम को हम दोनों भाई के घर पहुंचे।
रोहतास भाई अभी तक नहीं आये थे।

जब अमन ने बेल बजाई तो मीनाक्षी ने दरवाजा खोला। मैं तो मीनाक्षी को देखता ही रह गया। दो साल पहले देखा था मैंने मीनाक्षी को। तब वो बिल्कुल बच्ची सी लगती थी। पर आज देखा तो मीनाक्षी को देखता ही रह गया। मीनाक्षी ने एक टी-शर्ट और एक खुला सा पजामा पहना हुआ था।

कहते हैं ना कमीने लोगों की नजर हमेशा आती लड़की के चूचों पर और जाती लड़की के चूतड़ों पर ही पड़ती है। वैसा ही मेरे साथ भी हुआ, मेरी पहली नजर मीनाक्षी की उठी हुई छातियों पर पड़ी। बदन पर कसी टी-शर्ट में उसकी चूचियाँ अपनी बनावट को भरपूर बयाँ कर रही थी, एकदम किसी कश्मीरी सेब के आकार की खूबसूरत चूचियाँ देख कर मेरा तो दिल मचल गया।

तभी दिल के किसी कोने से एक दबी हुई सी आवाज आई ‘राज यह तू क्या कर रहा है, वो तेरे दोस्त की भतीजी है।’
ऐसा ख्याल आते ही मैं कुछ देर के लिए संभला और अमन के साथ उसके कमरे में जाकर लेट गया।

कुछ देर बाद मीनाक्षी ट्रे में दो गिलास पानी के लेकर अमन के कमरे में आई, उस समय अमन बाथरूम में था।
जब वो मुझे पानी देने लगी तो एक बार फिर से मेरी नजर उसकी चूचियों पर अटक गई, मैंने पानी ले लिया और पीने लगा।
पानी पीने के बाद मैंने खाली गिलास मीनाक्षी की तरफ बढ़ा दिया।

जब मीनाक्षी गिलास लेकर वापिस जाने लगी तो ना जाने कैसे मेरे मुँह से निकल गया- मीनाक्षी, तुम तो यार क़यामत हो गई हो… बहुत खूबसूरत लग रही हो!
मीनाक्षी ने पलट कर मेरी तरफ अजीब सी नजरों से देखा। एक बार तो मेरी फटी पर जब मीनाक्षी ने मुझे थोड़ा मुस्कुरा कर थैंक यु कहा तो मेरी तो जैसे बांछें खिल गई, मुझे लगा कि काम बन सकता है पर याद आ जाता कि ‘नहीं यार, कुछ भी हो, है तो मेरे खास दोस्त की भतीजी।’

रात को करीब नौ बजे रोहतास भाई भी आ गए, फिर ड्राइंग रूम में बैठ कर सब बातें करने लगे। कोमल भाभी और मीनाक्षी रसोई में खाना बना रहे थे।
जहाँ मैं बैठा था, वहाँ से रसोई के अन्दर का पूरा हिस्सा दिखता था। मैं अपनी जगह पर बैठा बैठा मीनाक्षी को ही ताड़ रहा था।
मैंने गौर किया की मीनाक्षी भी काम करते करते मुझे देख रही है। एक दो बार हम दोनों की नजरें भी मिली पर वो हर बार ऐसा दिखा रही थी कि जैसे वो अपने काम में व्यस्त है।

AUDIO SEX STORIES HINDI


एक दो बार मैंने कोमल भाभी के बदन का भी निरीक्षण किया तो वो भी कुछ कम नहीं थी। चंडीगढ़ की आधुनिकता का असर साफ़ नजर आता था कोमल भाभी पर भी।
रसोई में काम करते हुए उन्होंने भी एक टी-शर्ट और पजामा ही पहना हुआ था जिसमें उनके खरबूजे के साइज़ की मस्त चूचियाँ और बाहर को निकले हुए मस्त भारी भारी कूल्हे नुमाया हो रहे थे।

एक बार तो मन में आया कि कोमल भाभी ही मिल जाए क्यूंकि देवर भाभी का रिश्ता में तो ये सब चलता है। पर मीनाक्षी के होते भाभी का भरापूरा बदन भी मुझे फीका लग रहा था, बस बार बार नजर मीनाक्षी के खूबसूरत जवान बदन पर अटक जाती थी।

रात को लगभग साढ़े दस बजे सबने खाना खाया। खाना खाते समय मीनाक्षी मेरे बिल्कुल सामने बैठी थी। मैं तो उस समय भी उसकी खूबसूरती में ही खोया रहा।
मीनाक्षी भी बार बार मुझे ‘चाचू.. चावल लो… चाचू सब्जी लो… चाचू ये लो… चाचू वो लो…’ कह कह कर खाना खिला रही थी। जब भी वो ऐसा कहती तो मेरे अन्दर एक आवाज आती ‘ये सब छोड़ो, जो दो रसीले आम टी-शर्ट में छुपा रखे है उनको चखाओ तो बात बने।’

खाना खाया और फिर सोने की तैयारी शुरू हो गई।
तभी मीनाक्षी ने अमन को आइसक्रीम खाने चलने को बोला पर अमन ने थका होने का बोल कर मना कर दिया।
मयंक और मीनाक्षी दोनों आइसक्रीम खाने जाना चाहते थे। जब अमन नहीं माना तो रोहतास भाई बोल पड़े- राज, तुम चले जाओ बच्चों के साथ। तुम भी आइसक्रीम खा आना और साथ ही घूमना भी हो जाएगा।

मैं तो पहले से ही इस मौके की तलाश में था, मैंने हाँ कर दी। मैं और मयंक घर से बाहर निकल गये और थोड़ी ही देर में मीनाक्षी भी अपनी स्कूटी लेकर बाहर आ गई। मैं तो पैदल जाना चाहता था पर वो बोली- आइसक्रीम वाला थोड़ा दूर है तो स्कूटी पर जल्दी पहुँच जायेंगे।
पर अब समस्या यह थी कि छोटी सी स्कूटी पर तीनों कैसे बैठें।

मीनाक्षी बोली- मयंक को आगे बैठा लो और तुम स्कूटी चलाओ, मैं पीछे बैठती हूँ।
मयंक भी इसके लिए राजी हो गया।

मैंने मयंक को आगे बैठाया और तभी मीनाक्षी भी अपने पाँव दोनों तरफ करके मेरे पीछे बैठ गई।
छोटी सी स्कूटी पर तीन लोग…
मीनाक्षी मेरे पीछे बैठी तो अचानक मुझे उसकी मस्त चूचियों का एहसास अपनी कमर पर हुआ।
मेरे लंड महाराज तो एहसास मात्र से हरकत में आ गये। थोड़ी दिक्कत तो हो रही थी पर फिर भी मैंने स्कूटी आगे बढ़ा दी।

जैसे ही स्कूटी चली मीनाक्षी मुझ से चिपक कर बैठ गई, उसकी चूचियाँ मेरी कमर पर दब रही थी जिनका एहसास लिख कर बताना मुश्किल था।
तभी एक कार वाला हमारे बराबर से गुजरा तो मुझसे स्कूटी की ब्रेक दब गई। यही वो क्षण था जब मीनाक्षी ने मेरी कमर को अपनी बाहों के घेरे में लेकर जकड़ लिया।
मेरा तो तन-बदन मस्त हो गया था… मीनाक्षी के स्पर्श से पहले ही चिंगारियाँ फ़ूट रही थी पर जब मीनाक्षी ने मुझे ऐसे पकड़ा तो आग एकदम से भड़क गई।

अब मीनाक्षी की दोनों चूचियाँ मेरी कमर पर गड़ी जा रही थी। मैंने अचानक मेरा एक हाथ पीछे करके अपनी पीठ पर खुजाने का बहाना किया और यही वो समय था जब मेरा हाथ मीनाक्षी की चूची को छू गया।
‘क्या हुआ चाचू…’ कह कर मीनाक्षी थोड़ा पीछे हुई।
‘कुछ नहीं, पीठ पर कुछ चुभ रहा है… और थोड़ी खारिश सी हो रही है।’ कहकर मैं फिर से अपनी पीठ खुजाने लगा।

वैसे तो जब मैंने अपना हाथ दुबारा पीछे किया तो मीनाक्षी भी पीछे को हो गई थी पर स्कूटी पर ज्यादा जगह नहीं थी तो मेरा हाथ फिर से एक बार उसकी चूची पर पड़ा।
यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !

तभी सड़क पर एक छोटा सा खड्डा आ गया और मैंने ब्रेक दबा दी जिससे मीनाक्षी भी आगे की तरफ आई और मेरा हाथ मीनाक्षी की चूची और मेरी पीठ के बीच में दब गया।
मैंने भी मौका देखा और मीनाक्षी की चूची को अपने हाथ में पकड़ कर हल्के से दबा दिया।
‘क्या करते हो चाचू…’ मीनाक्षी थोड़ा कसमसा कर पीछे को हुई, अब मैंने अपना हाथ आगे कर लिया।

मैंने थोड़ा मुड़ कर पीछे मीनाक्षी की तरफ देखा तो उसके चेहरे पर शर्म भरी मुस्कान नजर आई।

तभी आगे मार्किट शुरू हो गई और हम एक आइसक्रीम पार्लर पर पहुँच गए और आइसक्रीम आर्डर कर दी।

कहानी जारी रहेगी।


Next Part: - दोस्त की भतीजी संग वो हसीन पल-2

Post a Comment

Previous Post Next Post