मामा की बेटी ने कमसिन चूत चुदाई

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नमस्ते मित्रो.. मेरा नाम अंगरेज है। आज मैं अपनी जिंदगी की कहानी बताने जा रहा हूँ। मैं पंजाब का रहने वाला हूँ.. मुझे हिंदी लिखना बहुत अच्छे ढंग से नहीं आता है.. फिर भी मैं कोशिश कर रहा हूँ।

मैं खिलाड़ी होने की वजह से शारीरिक तौर पर थोड़ा पतला हूँ.. पर दिखने आकर्षक हूँ। मेरा रंग गोरा.. कद 6.1 फुट है। मेरा लंड 6 इन्च लंबा है और काफी मोटा भी है।

बात तब की है.. जब मैं स्कूल में पढ़ता था। मुझे उस समय सेक्स के बारे में थोड़ा बहुत पता था। मैं स्कूल की छुट्टियों में मामा के घर गया। मेरे मामा की लड़की मीत मुझसे पाँच साल बड़ी है।
उसकी मेरे साथ बहुत बनती थी.. वो मुझे बाद में पता चला कि वो मुझ पर फ़िदा थी।

वो हमेशा मेरे आस-पास ही रहती थी.. चाहे वो खेलने का वक्त हो या खाने का वक्त हो.. वो मुझे हर वक्त पकड़ कर सीने से लगाती रहती थी।
किसी न किसी बहाने से हर वक्त मुझे चुम्मियाँ करती रहती थी.. कभी वो मुझे काट भी लेती थी।
मुझे इन चीजों से थोड़ी तकलीफ होती थी.. पर बड़ी बहन का प्यार समझ कर मैं भूल जाता। उसके मन में कुछ और ही चल रहा था। आखिर मैं कब तक बचता..

गरमियों की वजह से सभी परिवार वाले बाहर सोते थे.. पर एक शाम बारिश होने की वजह से सब को अन्दर सोना पड़ा। मीत दीदी और मैं उनके कमरे में सो गए। मुझे नहीं पता था.. कि आज रात मेरी शिकारी दीदी.. मेरा शिकार करने वाली हैं।
मैं थका होने की वजह से एक ही कंबल में दीदी से सट कर सो गया।
नींद आने के एक घंटे बाद मेरी आँख खुली तो बिजली जा चुकी थी। पूरे कमरे में घुप्प अंधेरा था।

दीदी को लगा कि मैं सो गया हूँ.. तो दीदी ने मुझे किस करना शुरु कर दिया।
मैं चुपचाप लेटा रहा.. मैंने सोचा अगर मैं हिला.. तो दीदी मुझे हर बार की तरह काट ना ले.. फिर दर्द सहना पड़ेगा।

दीदी को चुदास चढ़ने लगी। अब वे गाल छोड़ कर.. हल्के-हल्के से मेरे होंठों को चूमने लगीं। उन्हें लगा कि मैं नींद में हूँ.. वो आगे बढ़ने लगीं।

अब उन्होंने आहिस्ते से अपना हाथ मेरी पैंट में डाल दिया और मेरी नूनी को हिलाने लगीं, मुझे अजीब सा मजा आने लगा, मेरी नूनी लंड बन गई।
वैसे मैंने अपने लौड़े की मुठ्ठ पहले भी मारी थी.. पर इससे आगे कुछ पता नहीं था।
करीब दस मिनट बाद मैं झड़ने पर आ गया।

अब तक दीदी को लग रहा था कि मैं सो रहा हूँ.. पर झड़ते समय मैं अपने पर काबू न रख सका और झड़ते वक्त मैंने दीदी को कस कर पकड़ लिया और ‘उ.. ईईई…’ की आवाज के साथ झड़ने लगा।

दीदी एकदम से डर गईं.. उन्होंने जल्दी से अपना हाथ मेरी पैंट से बाहर निकाल लिया.. पर तब तक ढेर सारा माल उनके हाथ पर लग गया था।
उन्होंने जल्दी से हाथ पौंछा और मुझसे माफी मांगने लगीं.. कहने लगीं- सब कुछ नींद में हो गया.. मैं खेल रही थी नींद में..
मुझे अब सब समझ आ गया था.. पर मजा लेने के चक्कर में मैंने कहा- कोई बात नहीं दीदी..

फिर हम चुप होकर लेट गए।
दस मिनट बाद मैंने दीदी से कहा- आप जल्दी सो जाओ ना..
वो बोलीं- क्यों?
मैंने कहा- फिर से नींद में खेलेंगे.. बड़ा मजा आया था।

वो बोलीं- मजा लेना है.. तो ऐसे ही खेल लेते हैं.. पर वादा करो कि इस खेल के बारे में किसी को बताओगे नहीं..
मैंने कहा- ठीक है..
वो बोलीं- इस खेल में और भी मजा है.. खेलोगे?
मैंने कहा- हाँ..
वो बोलीं- आज मैं खेलती हूँ.. तुम आनन्द उठाओ.. जब तुम सीख जाओगे.. फिर तुम खेलना.. मैं मजा लूँगी।

उन्होंने मेरे कपड़े उतार दिए.. फिर मेरे ऊपर चढ़ कर उल्टा हो कर लेट गईं। अब वो मेरा लंड चूसने लगीं.. मेरे होंठों के सामने उनकी फुद्दी थी.. मैं भी उसे अपनी जीभ से चूसने लगा।
उनकी चूत से पानी बह रहा था।
दस मिनट बाद उठीं और तेल लाकर फिर से मेरे ऊपर आ गईं।
मेरा लंड सख्त होकर बिल्कुल लोहे की रॉड बन गया था। उन्होंने फिर से मेरा लंड पकड़ा.. उस पर तेल लगाने लगीं, फिर चूत पर लौड़े को सैट करके और एक हाथ मेरे मुँह पर रख करके शॉट मारने की तैयारी में हो गईं।

मुझे कुछ समझ में नहीं आया कि क्या होने वाला है.. बस मजा आ रहा था। उन्होंने अपने और मेरे मुँह को जोर से दबाया और ‘फचाक’ से झटके के साथ लौड़े पर बैठ गईं।
मेरे लौड़े का धागा टूट गया और मेरी जान निकल गई, मेरी चीख उनके हाथ के कारण दब गई। मैंने देखा कि दीदी के भी आँसू निकल आए थे।
दोनों की सीलें एक साथ टूट गई थीं।

हम दस मिनट तक रुके रहे.. एक-दूसरे के होंठों को चूसते रहे। अब दीदी धीरे-धीरे मेरे लौड़े पर ऊपर-नीचे होने लगीं।
इससे मुझे भी मजा आने लगा.. करीब दस मिनट बाद मुझे अजीब सा होने लगा.. चूत रस से मेरे टट्टों पर गीलापन हो गया और दीदी की बच्चेदानी गरम माल से भर गई।
हम एक-दूसरे से लिपटे पड़े रहे। हमारे अंग खून से लथपथ हो गए थे।

फिर दीदी ऊपर से उतरीं.. अपनी कच्छी से सब साफ किया। कुछ देर यूँ ही चुप होकर लेट गए.. फिर हम सो गए।
अगली सुबह दोनों दर्द के मारे चल नहीं पा रहे थे।
यह था कमसिन उम्र की चुदाई का अविस्मणीय सच्चा किस्सा.. जो अक्सर सब के साथ किसी न किसी रूप में होता रहता है..

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